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धसगुड़ जलप्रपात बना मौत का फंदा, 60 फीट नीचे गिरा किशोर, चार हड्डियां टूटीं – सुरक्षा इंतज़ाम नदारद..

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महासमुंद। छत्तीसगढ़ के खूबसूरत मगर खतरनाक धसगुड़ जलप्रपात ने एक बार फिर अपनी लापरवाही भरी सूरत से एक मासूम को मौत के मुंह में धकेल दिया। बारिश के मौसम में प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने पहुंचे एक किशोर की जिंदगी उस वक्त थम गई जब वह 60 से 65 फीट की ऊंचाई से चट्टानों पर आकर गिर गया।

रविवार को छेरकापुर गांव निवासी निखिल साहू अपने दो दोस्तों के साथ धसगुड़ जलप्रपात पहुंचा था। प्राकृतिक सौंदर्य के आकर्षण में वह जलप्रपात की चोटी तक जा पहुंचा। लेकिन बारिश के चलते चट्टानों पर फिसलन इतनी ज्यादा थी कि संतुलन बिगड़ा और वह सीधे गहराई में जा गिरा। इस हृदयविदारक हादसे का वीडियो भी सामने आया है, जिसमें किशोर को फिसलते और गिरते देखा जा सकता है।

गंभीर रूप से घायल निखिल को उसके दोस्तों और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से तुरंत बलौदाबाजार के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उसकी जान फिलहाल खतरे से बाहर है, लेकिन उसके शरीर की चार हड्डियां टूट चुकी हैं और वह अत्यधिक दर्द में है। फिलहाल डॉक्टरों की टीम उसकी लगातार निगरानी कर रही है।

प्रशासन की लापरवाही पर उठे सवाल :

सिर्फ निखिल ही नहीं, बल्कि हर साल सैकड़ों पर्यटक इन जलप्रपातों की चपेट में आ चुके हैं। सिद्धखोल, धसगुड़ और अन्य जलप्रपातों पर पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ रही है, मगर इन स्थलों पर न तो कोई सुरक्षा इंतज़ाम हैं, न चेतावनी संकेतक, न गार्ड और न ही रैलिंग। यह सीधी लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशासनिक अपराध है।

क्यों नहीं जाग रहा प्रशासन? – प्रश्न यह उठता है कि हर साल हो रहे हादसों के बावजूद स्थानीय प्रशासन आखिर कब जागेगा? संवेदनशील पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा के बुनियादी इंतज़ाम न होना क्या सीधे-सीधे आम जनता की जान के साथ खिलवाड़ नहीं है?

धसगुड़ जैसे पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा इंतज़ामों की घोर कमी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि प्रशासन केवल हादसे के बाद हरकत में आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

अब सवाल यह है :

1.क्या प्रशासन को किसी की मौत का इंतज़ार है?
 2 .कब तक पर्यटक ऐसे लापरवाह तंत्र के चलते जान जोखिम में डालते रहेंगे?
 3. क्या धसगुड़ जैसे स्थलों को ‘घातक पर्यटन स्थल’ घोषित कर चेतावनी बोर्ड और गार्ड्स की तैनाती नहीं होनी चाहिए?

4 .यह खबर केवल एक हादसा नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का आईना है। जवाब चाहिए… अब नहीं तो कब?

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