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मोदी-3 में ये क्या हो रहा है? हिंदू पानी मुसलमान पानी :व्यंग्य राजेंद्र शर्मा

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हिन्दू पानी मुसलमान पानी 

देखा, देखा, सेकुलर वालों का चंटपना देखा। मोदी जी, योगी जी कुछ भी करें, कितना ही शुद्धता-पवित्रता का ख्याल करें, ये पट्ठे हर चीज को घुमा देते हैं और उसमें सेकुलर-कम्युनल वाला एंगल घुसा देते हैं।

राजेंद्र शर्मा लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।

अब बताइए, योगी जी की पुलिस ने मुजफ्फरनगर जिले में जो आर्डर निकाला था कि ठेले-खोमचे वालों से लेकर ढाबे-रेस्टोरेंटों तक, कांवड़ियों के रास्ते पर पड़ने वाले खाने-पीने के सामान के सभी दुकानदारों को मालिक के नाम वाले साइन बोर्ड लगाने चाहिए, जिससे कांवड़ियों को नाम देखकर ही दुकान के धर्म का पता चल जाए, तो सेकुलरवालों ने शोर मचा दिया कि यह तो धर्म के हिसाब से भेदभाव करना है।

कोई पीछे अंगरेजों के टैम में चला गया कि यह तो विदेशी राज के हिंदू पानी- मुसलमान पानी, हिंदू चाय- मुसलमान चाय वगैरह की वापसी है, तो कोई हिटलर के टैम की जर्मनी तक चला गया कि यह तो यहूदियों की दुकानों पर पीले सितारे लगाकर, दूर से ही पहचान कराए जाने की नकल है।

संविधान-विरोधी, एकता विरोधी और भी न जाने क्या-क्या? पर सब झूठ। सरासर झूठ।

इतनी मोटी-सी बात इन सवा चतुरों को दिखाई नहीं दी कि अगर योगी जी की पुलिस को हिंदू-मुसलमान ही करना होता, तो सिर्फ कांवड़ियों के रास्ते पर ही यह हुक्म क्यों लागू होता? योगी जी की पुलिस यही हुक्म अगर सारे जिले में ठेले-खोमचे, ढाबा-रेस्टोरेंट वालों पर, बल्कि सिर्फ खाने-पीने के सामान वाले ही क्यों, हर तरह की दुकानों, दफ्तरों वगैरह पर भी लागू करा देती, तो क्या कोई उसका हाथ पकडऩे वाला था? कोई नीतीश, कोई चिराग, कोई चंद्रबाबू, कोई अल्पसंख्यक अधिकार आयोग, कोई मानवाधिकार आयोग, कोई अदालत, कोई भी? फिर भी उसने सब दुकानों, दफ्तरों को तो छोड़ ही दो, सब खाने-पीने के सामान वालों पर भी यह हुक्म लागू नहीं किया। हुक्म लागू किया, तो सिर्फ कांवड़ियों के रास्ते पर पड़ने वाली रेहड़ियों, खोखों, दुकानों, ढाबों वगैरह पर। आखिर क्यों? क्योंकि इस हुक्म का हिंदू-मुस्लिम से कुछ लेना-देना ही नहीं है। इसके पीछे तो सिर्फ एक चिंता है — कांवड़ियों और उनकी कांवड़ की शुद्धता सुरक्षित रहे। बस कोई हिंदू कांवड़ियां किसी मुसलमान से, मुसलमान के छुए चाय-पानी वगैरह से, मुसलमान दुकानदार के गल्ले से निकले नोटों-रेजगारी वगैरह से, मुसलमान की दुकान की बैंच, स्टूल, कुर्सी मेज वगैरह से, छुआ न जाए ; छुआने से अशुद्ध न हो जाए। उसकी कांवड़ का गंगाजल अपवित्र न हो जाए, जैसे दलितों के छुआने से हो जाते हैं। बस इतनी सी तो बात है — अशुद्ध को छुओ मत, अशुद्ध से छुआओ मत और अशुद्धों, तुम शुद्ध को छू मत लेना, वर्ना…!

इसका भला हिंदू-मुस्लिम करने से क्या लेना-देना है? मुसलमान भी तो दूर से ही नाम देखकर हिन्दुओं के छुए से अपनी शुद्धता की हिफाजत कर सकते हैं। उन्हें भी अधिकार है, अगर मुसलमान कांवड़ नहीं ले जाते, तो ये उनकी प्रॉब्लम है, हिन्दू अपनी शुद्धता से समझौता क्यों करें? फिर भी पता नहीं, कहाँ से सेकुलर वाले चले आए ठेलों पर ‘‘ना हिंदू, ना मुसलमान, मोहब्बत की दुकान’’ की तख्तियां लगवाने!

फिर भी इन सेकुलर वालों ने मुजफ्फर नगर पुलिस के हुक्म पर इतना शोर मचाया, इतना शोर मचाया कि कमजोर दिल वाले भगवाइयों को भी डर लगने लगा था कि कहीं योगी जी, विरोधियों के शोर के आगे कमजोर न पड़ जाएं ; कहीं पब्लिक के सामने मुजफ्फरनगर के पुलिस अफसरों के कान न खींच दिए जाएं कि लखनऊ के हुकुम के बिना, ऐसा हुकुम कैसे जारी कर दिया! बेचारे मुजफ्फर नगर के पुलिस अफसरों ने भी शोर से घबराकर जब यह कहना शुरू किया कि उनका हुक्म तो स्वैच्छिक था, जिसे नहीं जंचे, नहीं भी मानेगा, तो भी जेल थोड़े ही भेजा जाएगा ; तब तो कमजोर दिल वाले भगवाइयों के दिल ही बैठ गए। लोकसभा चुनाव की हार का घाव ताजा था। ऊपर से लखनऊ में चुनाव में हार की समीक्षा में सीएम और डिप्टी सीएम के बीच, एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ने के चक्कर में सिर-फुटौव्वल और। बाकायदा मोदी बनाम योगी की रस्साकशी। फिर भी जब बहुतों को लग रहा था कि हो न हो, इस बार तो योगी जी दब जाएंगे, तभी योगी जी ने अगली ही बॉल पर छक्का जड़ दिया। जो मुजफ्फर नगर से शुरू हुआ है, पूरी यूपी में होगा। खोमचे, ठेली, दुकान, रेस्टोरेंट, सब को बोर्ड पर धर्म की पहचान कराने वाला नाम लगाना होगा, जिससे दूर से देखकर ही खाने-पीने की चीजों के धर्म की पहचान हो जाए। कोई गलती से, गलत धर्म वाली किसी चीज से छू नहीं जाए। योगी जी की देखा-देखी, धामी जी ने भी उत्तराखंड में वही हुक्म जारी कर दिया है। इसी महीने उपचुनाव में पब्लिक ने उन्हें भी तो पटखनी लगायी है। पवित्रता की डिमांड बढ़ती गयी, ज्यों-ज्यों पब्लिक ने लात लगायी भगवाइयों को।

हिदू इन सेकुलरवालों की इस झूठी दलील में आने वाला नहीं है कि अगर कांवड़ियों के शाकाहार की शुद्धता की ही रक्षा की चिंता होती, तो शाकाहारी ढाबों/ रेस्टोरेंटों के बोर्ड पर शुद्ध शाकाहारी लिखवाना काफी था। धर्म की पहचान कराते हुए मालिकों के नाम लिखाने की क्या जरूरत थी? पर बात शाकाहार-मांसाहार की है ही नहीं। उनकी शुद्धता को सिर्फ शाकाहार-मांसाहार तक सिकोड़ दिया जाए, यह हिंदुओं को मंजूर नहीं होगा। ऐसे तो कल को ये कहेंगे कि अलग शुद्ध शाकाहारी ढाबे की भी क्या जरूरत है, शाकाहार की शुद्धता को एक ही ढाबे में बगल के पतीले से बगल की मेज पर बैठकर, खाने तक सिकोड़ लो। पहले मंजूर हो सकता था, मोदी जी-योगी जी के भारत में यह सब नहीं चलेगा। अब हमारी शुद्धता का गैर-शाकाहारी को बंद ही कराने तक विकास होगा। मोदी जी के तीसरे कार्यकाल में हमारी शुद्धता, कम से कम छुआछूत की अपनी पुरानी परंपरा के पुनरुत्थान तक तो जानी ही चाहिए। अशुद्ध को अदृश्य बनाने का तकाजा करने वाली आला दर्जे की शुद्धता के लिए शायद एक और कार्यकाल का इंतजार करना पड़ेगा। खैर कोई बात नहीं, सब्र का फल मीठा! हां ये दलित वगैरह छुआछूत के पुनरुत्थान पर ज्यादा हल्ला नहीं मचाएं। यह न भूलें कि योगी जी-मोदी जी की डबल इंजन सरकार ने एक बार भी नहीं कहा है कि दुकानों के बोर्डों पर जाति-प्रमाणपत्र नहीं लगवाए जाएंगे। ना भूलें कि जाटव पानी, मुसलमान पानी से कम अशुद्ध नहीं होता है।

मोदी-3 में ये क्या हो रहा है?

कोई बताएगा कि आखिर ये हो क्या रहा है? कहां तो मोदी 3.0 का शोर था। पहले की तरह शपथ ग्रहण थे। पहले की तरह का ही मंत्रिमंडल था। पहले की तरह मंत्रिपदों का वितरण था। दोनों सदनों में पहले वाले ही सभापति थे। पहले की तरह विदेश यात्राओं में झप्पियां वगैरह थीं। बस जरा मोदी जी का दिन का पोशाक बदलने का औसत कुछ कम हो गया था और उनकी जुबान से जब-तब एनडीए शब्द सुनाई देने लगा था। यानी सब कुछ करीब-करीब पहले की तरह ही चल रहा था। लेकिन, तभी अचानक पलस्तर के अंदर से ईंटें खिसकनी शुरू हो गयीं। बताइए, पहले तो यूपी की हार के बाद भी, दिल्ली के इशारे बेचारे ही रह गए और योगी जी लखनऊ की गद्दी से नहीं हटे, तो नहीं ही हटे। उल्टे बाबा ने पार्टी के ही सिर पर यह कहकर हार का ठीकरा फोड़ दिया कि हमें अति-आत्मविश्वास ने हरा दिया। गनीमत है कि मोदी जी की तरफ उन्होंने सिर्फ इशारा किया, नाम नहीं लिया, हालांकि जानने वाले जान ही रहे थे कि वह मोदी विश्वास की बात कर रहे हैं। जब से पार्टी मोदीमय हुई है, विश्वास की अति हो या कमी, आत्म तो सिर्फ एक का ही चलता है! फिर क्या था, मौर्या जी बिफर गए। बाबा की खल्वाट खोपड़ी पर हार का ठीकरा फोड़ने को मचल उठे। बोले ये तो पार्टी को दोष लगाना है। पार्टी तो सबसे ऊपर होती है। पार्टी सरकार से ऊपर होती है। सरकार चलाने वाले अपने गरेबां में झांकें, पार्टी पर दोष लगाने की हिमाकत न करें। फिर क्या था, सिर थे और हार का ठीकरा। दिल्ली वाले ही डर गए और ब्रेक की सीटी बजा दी। अखिलेश यादव का मानसून ऑफर कहीं काम कर जाता तो!

खैर! कुश्ती फिलहाल छूट गयी है और मानसून ऑफर भी कोई लेने को आगे नहीं आया है। पर डबल इंजन वालों के इकबाल की लंका तो लग गयी। योगी जी की मुजफ्फर नगर पुलिस ने कांवडिय़ों को मुस्लिम फल, मुस्लिम चाय, मुस्लिम रोटी-पानी वगैरह से बचाने के लिए, जरा सा ढाबों, दूकानों, टपरियों, रेहडिय़ों वगैरह पर उनका धर्म बताने वाले साइन बोर्ड लगाने का हुक्म क्या कर दिया, विरोधियों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया, वहां तक तो ठीक था। लेकिन, जब बाबा ने इन विरोधियों से दो-दो हाथ करने के मूड में पूरी यूपी में वैसे ही साइन बोर्ड लगवाने के आदेश दिए, बाहर तो बाहर भीतर से भी कांय-कांय शुरू हो गयी। अपने ही पूर्व-मंत्री, नकवी साहब बेसाख्ता बोल पड़े कि जाति-धर्म के नाम पर क्यों बांटा जा रहा है। यह तो अच्छा नहीं है। अपनी ही ट्रोल आर्मी ने जब तक गालियां देकर किसी तरह उनका मुंह बंद कराया, तक बिहार वाले चिराग ने धुंआ फैलाना शुरू कर दिया। कहते हैं, मैं जाति-धर्म पर बंटवारे के पक्ष में नहीं हूं। फिर तो खरबूजे को देखकर मंत्रिमंडल में खरबूजे रंग बदलने लगे। और जयंत चौधरी के अपने इलाके का मामला था, सो पट्ठे ने हद्द ही कर दी। कहते हैं कि यह फैसला बिना सोचे-समझे लिए गया है। और अब जब सरकार से फैसला कर लिया है, वह अड़ गयी है। फैसला वापस नहीं लेते, तो भी उसे ठंडे बस्ते में डाल दो!

और सिर्फ एक ही मामला हो तो संभाला भी जाए। बजट सत्र शुरू हुआ नहीं है और उत्तर में नीतीश और दक्षिण में चंद्रबाबू ने अपने-अपने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग कर दी है। उधर बंगाल में मोदी जी की पार्टी के सबसे बड़े नेता ने डिमांड कर दी है कि सब का साथ सब का विश्वास का नाटक बंद करो और जिस-जिस ने वोट दिया है, उसी का साथ देने का एलान करो। कोई और कह रहा है कि चार सौ पार के नारे ने मरवा दिया। यही हाल रहा तो मोदी 3.0 कैसे आएगा? तीसरी पारी में मामला 2.25 से 2.50 के बीच में तो नहीं अटक जाएगा। किसी अखिलेश का कहा सच तो नहीं हो जाएगा!

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