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वाह वाह रामजी आपने हमारे साथ क्या खेल खेला

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कृष्णा कुमार वैष्णव  व्यंग्य

 राम जी ये आपने बिल्कुल भी ठीक नहीं किया। बताइए, अपनी नगरी में ही अपने ध्वजाधारियों को हरवा दिया। बात सिर्फ किसी लल्लू सिंह की हार-जीत की होती, तो चलो आपकी दिल्लगी समझ कर दिल को समझा भी लेते। पर खुद मोदी जी का फोटो हर जगह मैदान में था, आपने फिर भी हरवा दिया। आप को पता भी है, लोग क्या कह रहे हैं? कह रहे हैं — अयोध्या तो झांकी है, अभी मथुरा, काशी बाकी है!

 

राम जी आपने भी हद्द कर दी, कैसे अपोजीशन वालों के पाले में ही जाकर खड़े हो गए? बताइए, चार सौ पार तो क्या होते, आपने तो तीन सौ पार के भी लाले पड़वा दिए। सिंहासन छोड़िए, कुर्सी तक पहुंचना मुश्किल करा दिया। खुद ही सोचिए, अब की बार, नायडू, नीतीश पर दारोमदार! आपको भी खूब मजाक करने की सूझी? नहीं क्या! पर अचानक हुआ क्या? कोई नाराजगी थी, कुछ बुरा लगा था, तो पहले ही बता देते। आप कोई विपक्ष वाले थोड़े ही थे कि आप की सुनी नहीं जाती। आप बेरोजगार नौजवान भी नहीं थे। आप कोई अग्निवीर भी नहीं थे। किसान भी नहीं थे। मैले कपड़े वाले मजदूर-वजदूर होने का तो सवाल ही कहां उठता था। दलित-वलित भी नहीं। महिला पहलवान भी नहीं।  आप की कैसे नहीं सुनी जाती? एक बार कहकर तो देखते। मोदी जी कुछ न कुछ कर के और कुछ न होता, तो कोई स्मारक वगैरह  बनवा कर, आपको संतुष्ट कर ही देते। सच पूछिए, तो इसीलिए तो अयोध्या में आपका भव्य मंदिर बनवाया था। कुछ और चाहिए था, वह भी मांग लेते, अडानी जी-अंबानी जी से बात कर के, मोदी जी कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही देते। घर की बात घर में रह जाती। आपने तो घर की हांडी चौराहे पर लाकर फोड़ दी। भला अपने झंडाबरदारों के साथ ऐसा भी कोई करता है?

कोई कह रहा है कि आप तो उंगली पकड़ाकर लाए जाने की बात का बुरा मान गए। तो कोई कह रहा है कि मोदी जी के सीधे परमात्मा का दूत होने से आप कंपटीशन मान बैठे। और कोई कह रहा है कि आप भी लेफ्टिस्टों की बातों में आ गए हैं। जो भी हो, यह तो बचपना है। अयोध्या में बालरूप में आये हैं, तो क्या सचमुच बचपना करेंगे? और कब तक? ग्रो अप मैन!

 

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