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संयुक्त किसान मोर्चा ने आरएसएस को लिया निशाने पर

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छत्तीसगढ़ / रायपुर   संयुक्त किसान मोर्चा ने आरएसएस को अपने निशाने पर लेते हुए उस पर राजनैतिक-सैद्धांतिक हमला किया है। मोर्चा की मीडिया सेल द्वारा जारी एक पर्चा में आरएसएस को देशी-विदेशी कॉर्पोरेटों का राजनैतिक एजेंट करार देते हुए पूछा गया है कि मोदी गारंटी के नाम पर जुमलेबाजी करने वाली आरएसएस-भाजपा लोकसभा के इन चुनावों में मजदूर-किसानों की आजीविका के मुद्दों पर चुप क्यों है? पर्चा में आरएसएस की सांप्रदायिक विचारधारा को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया गया है कि किसानों के संयुक्त आंदोलन के खिलाफ वह दुष्प्रचार कर रहा है।

संजय पराते रिपोर्टर अ. भा. किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष

उल्लेखनीय है कि संयुक्त किसान मोर्चा देश के 700 से अधिक किसान संगठनों का संयुक्त मंच है, जिसने मोदी सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था और आज भी फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी देने, किसानों को कर्जमुक्त करने, वरिष्ठ किसानों को पेंशन देने, बिजली क्षेत्र और सार्वजनिक उपक्रमों और उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने तथा मजदूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं को वापस लेने जैसी मांगों पर देशव्यापी आंदोलन/अभियान चला रहा है। इस आंदोलन की धमक पूरे देश में दिख रही है।

 

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि जो आरएसएस कल तक “स्वदेशी आर्थिक नीति” की दुहाई देती थी, वह आज  साम्राज्यवाद, मुक्त व्यापार समझौतों और विश्व व्यापार संगठन के समक्ष मोदी सरकार की “घुटनाटेकू” नीतियों तथा जल, जंगल, जमीन, खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को देशी-विदेशी कॉरपोरेट के हवाले करने वाली नीतियों पर मौन है। इससे आरएसएस के उसी साम्राज्यवादपरस्ती का पता चलता है, जिसका परिचय उसने स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजों का वफादार भक्त बनकर दिया था।संयुक्त किसान मोर्चा ने हिंदुत्व की राजनीति के जनक वीडी सावरकर और आरएसएस के पितृ-पुरुष गोलवलकर पर भी सैद्धांतिक हमला किया है और उनकी सांप्रदायिक राजनीति को देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार बताया है। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों सहित कई सांप्रदायिक दंगों में आरएसएस की भूमिका बताते हुए पर्चा में कहा गया है कि “धर्म पर आधारित हिंदू राष्ट्र की विचारधारा एक आधुनिक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र-राज्य के विचार के खिलाफ है। आजादी की लड़ाई सभी धर्मों के लोगों ने लड़ी थी, लेकिन आरएसएस ने इस लड़ाई से गद्दारी की थी, इसलिए आरएसएस की विचारधारा निर्विवाद रूप से राष्ट्रविरोधी है।” आजादी के 77 वर्षों के बाद अभी भी आरएसएस  असहिष्णुता और धार्मिक नफरत का जहर फैला रही है। पर्चा में एमएस गोलवलकर के “बंच ऑफ थॉट्स” के हवाले से कहा गया है कि 1933 में जब पूरा देश भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी की निंदा कर रहा था, तब आरएसएस इन क्रांतिकारियों के विशाल बलिदान को “विफलता” के रूप में चित्रित करते हुए इन शहीदों की ही निंदा करने में व्यस्त था।

संयुक्त किसान मोर्चा ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में उजागर  चुनावी बांड घोटाले पर आरएसएस की चुप्पी पर भी सवाल उठाए गए है। पर्चा में कहा गया है कि इस घोटाले ने भाजपा को भ्रष्टाचार के स्रोत के रूप में उजागर किया है, लेकिन प्रधानमंत्री सहित दोषियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करने के बजाए वह मौन है और इस घोटाले के साथ खड़ी है। इसलिए सभी देशभक्त ताकतों को आरएसएस को अलग-थलग करने और उसे बेनकाब करने के लिए एक साथ आना चाहिए।

 

 

 

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